कुमाऊं के अख़बार का इतिहास | History of Newspapers of Kumaon

History of Newspapers of Kumaon

History of Newspapers आज मीडिया के कई रूप हमारे सामने हैं, जिनमें पत्र-पत्रिकाएँ, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल नेटवर्किंग इत्यादि. इन पर प्रभावी नियंत्रण के लिए प्रेस एक्ट ऑफ़ १९१०, यथा संशोधित प्रेस एक्ट १९३१ व १९३२ हैं, साथ ही हाल का ही साइबर कानून है. १९१० का यह एक्ट मुख्यतः गोरक्षा आन्दोलन के माध्यम से फूट रही स्वतंत्रता की कोपलों को रोकने के लिए लाया गया था. हालाँकि इसमें सामाजिक विद्वेष की भावना भड़काने के निषेध की व्यवस्था भी थी, पर मुख्य उद्देश्य देश प्रेम की भावना को कुचल डालना ही था. सामाजिक विद्वेष फ़ैलाने के विरुद्ध तत्कालीन सरकार के द्वारा किसी भी कार्यवाही के कोई संकेत नहीं मिलते.

इस एक्ट के आने से बहुत पहिले १८७० के दशक में भी कुमाऊं में अख़बार का प्रकाशन प्रारंभ हो चुका था. उस समय भी कुछ अंग्रेज अधिकारी ऐसे थे, जो सामाजिक जागरूकता के पक्षधर तो थे ही. उस समय तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के गवर्नर विलियम मूर थे. विलियम मूर १८७० में एक बार अपने ग्रीष्मकालीन भ्रमण पर अल्मोड़ा पधारे. सर हेनरी रामसे, जो उस समय कुमाऊं के कमिश्नर थे; की मदद से अल्मोड़ा के एक जागरूक नागरिक श्री बुद्धि बल्लभ पंत गवर्नर से मिलने गए थे. इसी मुलाकात के दौरान विलियम मूर ने श्री पंत को सुझाव दिया कि वह समाज में जागृति फ़ैलाने के लिए क्यों नहीं एक अख़बार का प्रकाशन प्रारंभ कर देते ? वह भली भांति जानते ही थे कि पश्चिम में आई जागृति के मूल में प्रेस का बड़ा हाथ है. उनकी सलाह पर श्री पंत ने अल्मोड़ा में प्रेस क्लब की स्थापना की. तब पर्वतीय प्रांतर में कोई प्रिंटिंग प्रेस नहीं थी, अतः उन्होंने सर्व प्रथम एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की और १८७१ में ‘अल्मोड़ा अखबार’ का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया. इसके पाठक केवल भारतीय सरकारी अधिकारी व प्रबुद्ध लोग ही थे. व्यावसायिक रूप से तो यह प्रयास सफल नहीं हुआ, परन्तु इसके माध्यम से कुछ सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन करने में सहायता मिली. (History of Newspapers of Kumaon)

इस अख़बार के देशभक्ति की ओर झुकाव के कारण इसे पाबंदियों का शिकार होना पड़ा और यह बंद हो गया. इसी कारण से ‘शक्ति’ के नाम से बीसवीं सदी के प्रारंभ में इसका प्रकाशन पुनः प्रारंभ हुआ. बाद में श्री बद्री दत्त पाण्डेय के हाथ में इस पत्र का संपादन आया. वह प्रखर देशभक्त व स्वतंत्रता सेनानी थे, परन्तु दबे कुचले लोगों के प्रति उनकी धारणा कुछ हद तक सद्भावनापूर्ण नहीं मानी जाती थी. इसका आभास उनके द्वारा रचित ‘कुमाऊँ का इतिहास’ के अवलोकन से भली भांति मिल जाता है. इसी कारण से राय बहादुर स्व. मुंशी हरिप्रसाद टम्टा, जो कुमायूं के सबसे पहिले उद्योगपति भी थे, की अगवाई में १९३४ में ‘समता’ साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ, जो संभवतः आज भी प्रकाशित होता है.

जिस प्रकार १८७१ में अल्मोड़ा अख़बार के प्रकाशन में उस समय के गवर्नर विलियम मूर ने नैतिक समर्थन प्रदान किया था, ठीक उसी तरह हरिप्रसाद टम्टा के इस प्रयास में तब (१९३४) के संयुक्त प्रान्त के गवर्नर सर ग्राहम हैरी हेग के द्वारा भी उनका मनोवल बढ़ाने के लिए नैतिक समर्थन प्रदान किया गया. अन्य पत्र पत्रिकाओं के विपरीत इसके माध्यम से समाज के दूसरे वर्गों के लिए अपमानजनक शब्दों, प्रसंगों या दुराग्रहों से दूर रहने की नीति का भली भांति पालन किया गया. इसके माध्यम से दबे कुचले लोगों में जागृति लाने का भरसक प्रयास किया गया तथा इसका वितरण बागेश्वर के उत्तरायणी मेले के अवसर पर नि:शुल्क भी किया गया. तब बिना किसी बाहरी आर्थिक मदद से अख़बार चलाना बहुत कठिन था, क्योंकि उस समय समाज के जिस वर्ग के हितों को प्रमुखता देने का उद्देश्य सामने था, वह बिल्कुल ही पस्त था. अतः नियमित रूप से अख़बार का प्रकाशन चलता रहे, कुछ समय तक सरकार की ओर से दो सौ रुपया प्रतिमाह की आर्थिक मदद भी मिलती रही.

इसी जागरूकता के बल पर इस तबके के लोग सरकारी सेवा में आने लगे, इसके फलस्वरूप ही इन निरीह और गरीब तबके के लोगों के मनोवल में भारी वृद्धि हुई, क्योंकि मुंशी जी ने अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए दबे कुचले लोगों में शिक्षा का प्रचार व प्रसार करने का विकल्प ही चुना था, जिसमें वह पूर्णतः सफल रहे. ‘समता’ के प्रकाशन ने इस बात को भली भांति सिद्ध कर दिया कि प्रेस में नृसिंह भगवान् के बराबर ही शक्ति होती है, जो कठोर लौहस्तंभ को भी भेदकर अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रकट हो गये थे.

लेख – श्री उदय टम्टा ( से.नि. वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी )

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