दिल्ली – गढ़वाल हितैषिणी सभा की स्थापना के 100 वर्ष पूरे। पढ़िये इस संस्था के बारे में –

Delhi – 100 years of establishment of Garhwal Hitaishini Sabha completed.

देश की राजधानी दिल्ली में किसी सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के सौ साल की यात्रा के अपने मायने हैं। अभी जब देश अपनी आजादी का ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा था तो दिल्ली में कार्यरत ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ अपनी स्थापना के सौ वर्ष मनाने की तैयारी कर रही थी। ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ के सौ वर्षो और देश में आजादी के अमृत महोत्सव से गहरा नाता है। इसके ऐतिहासिक संदर्भ हैं। यह किसी संस्था की सामाजिक सरोकारों की यात्रा की शताब्दी मात्र नहीं है, बल्कि इतिहास के कई कालखंडों से गुजरकर व्यापक फलक पर देश-दुनिया को देखने की दृष्टि भी है। ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ के सौ वर्षो की यात्रा बताती है कि पहाड़ों से निकलकर मैदान, रेगिस्तान, सागर तट, म्यामांर और लाहौर तक इस समाज ने कैसे अपने को कई समाजों और संस्कृतियों से आत्मसात कर आजादी के आंदोलन से लेकर देश के विकास में योगदान दिया।

क्वेटा में तो 1919 में ही गढ़वाल सभा की स्थापना हो गई थी

उल्लेखनीय है कि पहले स्वतंत्रता आंदोलन से ही उत्तराखंड के युवाओं ने राष्ट्रीय आंदोलन में नई राजनीतिक चेतना के साथ हिस्सेदारी करनी शुरू की। प्रथम विश्वयुद्ध में भी बड़ी संख्या में यहां के युवाओं ने भाग लिया। यही वह समय था जब पहाड़ के लोगों ने अलग-अलग शहरों को अपना ठिकाना बनाया। उस समय लाहौर, क्वेटा, बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ जैसे शहरों में पहाड़ के लोगों की बसासत बढ़ने लगी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज में सैकड़ों युवाओं के भर्ती होने से म्यांमार और सिंगापुर में भी पहाड़ के लोगों की नई बस्तियां बनी। आजादी की लड़ाई के साथ पहाड़ के लोग पढ़ाई और रोजगार के लिए भी इन शहरों में आये। बताते हैं कि क्वेटा में तो 1919 में ही गढ़वाल सभा की स्थापना हो गई थी। बाद में लाहौर में भी गढ़वाल के लोगों ने ‘केन्द्रीय गढ़वाल सभा’ की स्थापना की।

ऐसे हुई गढ़वाल हितैषिणी सभा’ की स्थापना

दिल्ली में ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ की स्थापना की एक लंबी और दिलचस्प कहानी है। इसकी स्थापना 1923 में शिमला में ‘गढ़वाल सर्वहितैषिणी सभा’ के नाम से हुई थी। उन दिनों शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। गढ़वाल के लोगों का दिल्ली और शिमला आना-जाना रहता था। आठ-नौ साल निष्क्रिय रहने के बाद इसकी विधिवत आम सभा और चुनाव 1936 में हो पाया। कुछ व्यवधानों के बाद 1938 से ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ गढ़वाल की एक प्रतिनिधि सभा के रूप में काम करने लगी। इसी ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ की एक शाखा दिल्ली में खोली गई। दिल्ली में वर्ष 1941 में संस्था ने नए तरीके से अपना संविधान और नियमावली बनाकर सक्रिय रूप से काम करना शुरू कर दिया। उस समय रक्षा मंत्रालय में आईसीएस अधिकारी पी. मेसन थे। वे गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर रह चुके थे। उनके प्रयास से मंदिर मार्ग पर गढ़वाल भवन के लिए भूमि की व्यवस्था हुई। गांधीजी जब हरिजन बस्ती में आये तो यह जमीन प्रार्थना सभा के लिए आरक्षित हो गई। गढ़वाल भवन के लिए पंचकुइया रोड के श्मशान के पीछे की जमीन आवंटित हुई। विभाजन के बाद यह भूमि भी विस्थापितों को दे दी गई। गढ़वाल भवन के लिए फिर पूसा रोड पर जमीन दी गई, लेकिन यह भूमि भी बाद में विद्यालय को आवंटित कर दी गई। अन्ततः 1955 में गढ़वाल भवन के लिए पंचकुइयां रोड में भूमि का स्थाई बंदोबस्त हो पाया जिस पर अब गढ़वाल भवन बना है।

तब संस्था के पास मात्र 161 रुपए थे

‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ इस बार अपना शताब्दी वर्ष मना रही है। किसी भी संस्था के लिए यह गौरव की बात है। इसकी ठोस नींव जिन लोगों ने रखी उनमें आनंद सिह नेगी और आचार्य जोधासिंह रावत महत्वपूर्ण हैं जिनके प्रयासों ने 1958 में इस भवन के मानचित्र की स्वीकृति मिली। जब इस भवन के निर्माण की बात हो रही थी तब संस्था के पास मात्र 161 रुपए थे। तमाम झंझावतों के बावजूद ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ एक ऐसे इतिहास के निर्माण की ओर बढ़ रही थी जो भविष्य में न केवल गढ़वाल के लोगों के लिए सांस्कृतिक चेतना का आधार तैयार कर रही थी, बल्कि देश-दुनिया में अपनी सांस्कृतिक धाती का विस्तार भी कर रही थी। कई चरणों में, कई संघर्षों लेकिन अपनी प्रतिबद्ध सामाजिक सरोकारों के चलते ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ की इस शताब्दी यात्रा के अपने मायने हैं।

‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ कल अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर विभिन्न कार्यक्रमों से माध्यम से अपने पुरखों के संघर्षों को याद कर रही है। सालभर भी शताब्दी वर्ष के कई आयोजन हुए। ‘गढ़वाल हितैषिणी सभा’ के सभी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की मेहनत को सलाम। सभी पहाड़वासियों को इस अवसर पर बहुत-बहुत बधाई।शुभकामनाएं।

संदर्भ:

  1. गढ़वाल हितैषिणी सभा, नई दिल्ली की स्मारिका।

  2. उत्तराखंड के इतिहास पर लिखी गई पुस्तकें।

लेख : श्री चारु तिवारी 

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