शारदीय नवरात्रि – मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शारदीय नवरात्र का रखा था व्रत।

शारदीय नवरात्रि देवी दुर्गा को समर्पित एक हिन्दू त्यौहार है, जो हिंदी माह आश्विन में यानि शरद ऋतु में मनाया जाता है। इस दौरान दुर्गा माँ की पूजा आराधना की जाती है। लोग व्रत रखकर देवी दुर्गा की भक्ति करते हैं। शारदीय नवरात्रि का महात्म्य सर्वोपरि इसलिये है कि इसी समय देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर और आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी और उनकी पुकार सुनकर देवी माँ का आविर्भाव हुआ। उनके प्राकट्य से दैत्यों के सँहार करने पर देवी माँ की स्तुति देवताओं ने की थी। उसी पावन स्मृति में शारदीय नवरात्रि का महोत्सव मनाया जाता है।

shardiya navratri vrat by shri ram ji

मान्यता है कि शारदीय नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई। इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है। किष्किंधा में चिंतित श्रीराम रावण ने सीता का हरण कर लिया, जिससे श्रीराम दुखी और चिंतित थे। किष्किंधा पर्वत पर वे लक्ष्मण के साथ रावण को पराजित करने की योजना बना रहे थे। उनकी सहायता के लिए उसी समय देवर्षिनारद वहां पहुंचे। श्रीराम को दुखी देखकर देवर्षि बोले, राघव! आप साधारण लोगों की भांति दुखी क्यों हैं? दुष्ट रावण ने सीता का अपहरण कर लिया है, क्योंकि वह अपने सिर पर मंडराती हुई मृत्यु के प्रति अनजान है। देवर्षि नारद का परामर्श रावण के वध का उपाय बताते हुए देवर्षि नारद ने श्रीराम को यह परामर्श दिया, आश्विन मास के नवरात्र-व्रत का श्रद्धा पूर्वक अनुष्ठान करें। नवरात्र में उपवास, भगवती-पूजन, मंत्र का जप और हवन मनोवांछित सिद्धि प्रदान करता है। पूर्वकाल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवराज इंद्र भी इसका अनुष्ठान कर चुके हैं। किसी विपत्ति या कठिन समस्या से घिर जाने पर मनुष्य को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। महाशक्ति का परिचय

नारद ने संपूर्ण सृष्टि का संचालन करने वाली उस महाशक्ति का परिचय राम को देते हुए बताया कि वे सभी जगह विराजमान रहती हैं। उनकी कृपा से ही समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं। आराधना किए जाने पर भक्तों के दुखों को दूर करना उनका स्वाभाविक गुण है। त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनकी दी गई शक्ति से सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करते हैं। नवरात्र पूजा का विधान देवर्षि नारद ने राम को नवरात्र पूजा की विधि बताई कि समतल भूमि पर एक सिंहासन रखकर उस पर भगवती जगदंबा को विराजमान कर दें। नौ दिनों तक उपवास रखते हुए उनकी आराधना करें। पूजा विधिपूर्वक होनी चाहिए। आप के इस अनुष्ठान का मैं आचार्य बनूंगा।

राम ने नारद के निर्देश पर एक उत्तम सिंहासन बनवाया और उस पर कल्याणमयी भगवती जगदंबा की मूर्ति विराजमान की। श्रीराम ने नौ दिनों तक उपवास करते हुए देवी-पूजा के सभी नियमों का पालन भी किया। जगदंबा का वरदान मान्यता है कि आश्विन मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात में श्रीराम और लक्ष्मण के समक्ष भगवती महाशक्ति प्रकट हो गई। देवी उस समय सिंह पर बैठी हुई थीं। भगवती ने प्रसन्न-मुद्रा में कहा- श्रीराम! मैं आपके व्रत से संतुष्ट हूं।

जो आपके मन में है, वह मुझसे मांग लें। सभी जानते हैं कि रावण-वध के लिए ही आपने पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में अवतार लिया है। आप भगवान विष्णु के अंश से प्रकट हुए हैं और लक्ष्मण शेषनाग के अवतार हैं। सभी वानर देवताओं के ही अंश हैं, जो युद्ध में आपके सहायक होंगे। इन सब में मेरी शक्ति निहित है। आप अवश्य रावण का वध कर सकेंगे। अवतार का प्रयोजन पूर्ण हो जाने के बाद आप अपने परमधाम चले जाएंगे। इस प्रकार श्रीराम के शारदीय नवरात्र-व्रतसे प्रसन्न भगवती उन्हें मनोवांछित वर देकर अंतर्धान हो गई।

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